Tuesday, January 11, 2011

प्याज गरीबों को रुला रहा है !


प्याज गरीबों को रुला रहा है !
                                                       0 रामलुभाया अरोड़ा
एक समय था जब गरीब के झोपड़े में रोटी , प्याज , नमक और हरी मिर्च के साथ खा ली जाती थी . वह प्याज को मुक्का मार कर चींथता था और रोटी के साथ खा कर तृप्त हो जाता था . आज प्याज गरीब आदमी को चींथ रहा है . वह प्याज को सिर्फ दूर से निहार सकता है या '' पिअजिया बैरनिया सिर पे चढ़ गयी '' को लोकधुन में गाकर अपना जी बहला सकता है .

पिछले दो महीनों में प्याज सभी नागरिकों को झटका देता हुआ चालीस रुपये किलो पर पहुंचा . हम रोये झींके पर हमने तब भी प्याज खाना बंद नहीं किया . प्याज साठ पर पहुंचा . हम तब भी प्याज खाते रहे .

भारत का एक खासा बड़ा वर्ग अपने निम्न मध्य वर्ग से ऊपर उठा है . खरीदने की उसकी औकात में इजाफा हुआ है . उसने खाने में प्याज की कटौती नहीं की . फिर प्याज अस्सी रुपये किलो तक पहुँच गया . मुनाफाखोरों को प्याज में सोना दिखाई देने लगा . बड़ी तादाद में प्याज गोदामों में क़ैद कर दिया गया कि जब कीमत और बढ़ेगी , तब हम धीरे धीरे अपने गोदामों से बाहर निकालकर इसे मुंह मांगे दामों पर बचेंगे . प्याज बोरियों में बंद हो कर मुंह दिखाई को तरसने लगा पर व्यापारी वर्ग का दिल नहीं पसीजा . व्यापारियों का काम ही है -- अपने माल को बेच कर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना . जमाखोर प्याज से भरे अपने गोदामों की चौकसी पर तैनात हैं . जगह जगह गोदामों पर छापे मारे जा रहे हैं कि प्याज को गोदामों से बाहर निकाल कर जनता के बीच लाया जा सके .

विरोधी पार्टियों को सत्ताधारी सरकार को आड़े हाथों लेने का सुनहरा अवसर मिला है . वे महंगाई के मुद्दे पर सरकार की बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं . प्याज का मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है . सुन रहे हैं कि प्याज की कीमत सौ रुपये किलो तक पहुँचने वाली है . कल ही नासिक के थोक व्यापारियों ने सांकेतिक हड़ताल की कि उन्हें प्याज चालीस से ऊपर बेचने की छूट दी जाये .

यह सरकार हमारे लिए है , हम ने इसे चुना है पर हम भी सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं . हम चाहें तो इस मामले में सरकार की मदद कर सकते हैं . मुझे याद आता है , हमारे यहाँ हर खाने में हर रोज़ प्याज का इस्तेमाल होता था -- खूब मसालेदार खाना बनता पर नवरात्र आते ही नौ दिन के लिए घर से प्याज और लहसुन को निष्कासन मिल जाता . सब्जियां बिना प्याज लहसुन के बनतीं और खाना इतना हल्का , स्वादिष्ट और सुपाच्य लगता कि कभी कभी हम बच्चे , मां से '' नवरात्र वाली आलू परवल '' की सब्जी की फरमाईश करते . यानी प्याज बिना खाए भी हम महीना भर आराम से काट सकते हैं . जैन धर्म के अनुयायी अपने खाने में प्याज का इस्तेमाल ही नहीं करते . हम अगर कुछ समय के लिए जैनी बन जाएँ तो इसमें हर्ज़ क्या है ?

प्रधान मंत्री को चाहिए कि जनता से अपील करें कि जब तक प्याज की कीमत अठारह बीस पर नहीं आ जाती -- हम अपने खाने से प्याज का बहिष्कार करेंगे . अगर हम प्याज खरीदना बंद कर दें तो मुनाफाखोर उसे मुंहमांगी कीमत पर बेच नहीं पाएंगे और प्याज -- एक नायाब वस्तु न रहकर फिर से गरीब आदमी के प्रिय खाद्य का दर्जा ले पायेगा !